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Ratnesh Pandey

Mountaineer | Adventurer | Biker | Entrepreneur

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Social Causes

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कोरोना – प्रकृति से कुक्रत्य का कारण ।

by admin April 17, 2020
written by admin
say NO to corona

प्यारे साथियों,

सभी को राम-राम !!

आशा करता हूँ कि आप स्वस्थ और सकुशल हैं। जैसा कि हम सभी आज एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। 11 मार्च 2020 को कोरोनावायरस या कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था। इस वैश्विक महामारी ने विकराल रूप लेकर लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। चीन को गाली देना तो लाज़मी है पर इसमें अप्रत्यक्ष रूप से हम सबका भी योगदान है। दुनिया भर के वो तमाम राजनेता जिन्हें हम अपना प्रतिनिधि बनाते हैं, ये उनकी ज़िम्मेदारी है कि ऐसी किसी भी परिस्थिति को पहले तो पनपने ही ना दें और अगर कहीं भूल-चूक हो गई हो, तो उसे तुरंत रोकें और उससे सबक़ सीखें। कोरोना से पहले इबोला नामक एक बीमारी ने भी ऐसे ही पाँव पसारे थे। ऐसा माना जाता है कि वो भी चमगादड़ की ही देन थी। माफ़ी चाहूँगा! बेचारे चमगादड़ को फ़ालतू ही क़ोस रहा हूँ। करे कोई भरे कोई!!

जब पूरी दुनिया के राजनेताओं और ठेकेदारों को इबोला की वज़ह मालुम पड़ गई थी, तो मेरा सवाल है कि उसके ख़िलाफ़ आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई गई। किसी के भी कानों में जूँ तक नहीं रेंगी। यदि समय रहते संयुक्त राष्ट्र और पूरी दुनिया के देश, चीन के बाज़ारों पर लगाम लगाते, तो शायद यह दिन ना देखना पड़ता। कभी इबोला, कभी कोरोना, कभी फ़लाना, कभी ढिमका, क्या यही तमाशा हमेशा चलता रहेगा। यह महामारी 100 प्रतिशत हमारी ग़लतियों और अंधेखियों की वजह से हुई है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट किया है कि सबसे बुरा दौर अभी आना बाक़ी है।

हम मानवों ने प्रकृति के साथ बहुत छेड़छाड़ की है और धरती माँ को कई बार शर्मसार किया है। वैसे तो हमारे ऊपर कई कलंक लगे हैं – जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों, पहाड़ों की दुर्दशा और ना जाने क्या-क्या। इस विकासवादी और विस्तारवादी सोच के साथ हम बहुत हद तक पथ भ्रमित हो गए हैं और प्रकृति से प्यार करना भूल गए हैं। अब तो रहीम के दोहे शायद किताबों से भी ओझल हो गए हैं जिसमें वो कहते हैं कि – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। प्रकृति ने इस संसार में जो भी संसाधन दिए हैं वो मात्र हमारे उपयोग के लिए है। जब तक हम संसाधनों का उपयोग कर रहे थे, तब तक तो ठीक था पर अंधेर तो तब हो गया, जब हमने अपनी मनमानी करके लोभ और लालच में ओछेपन की पराकाष्ठा पार कर दी।

हमने हमेशा क़ुदरत के साथ छेड़छाड़ किया और उसका ख़ामियाज़ा भी भुगता है।  इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि पूरी दुनिया थम गई हो। यहाँ तक कि प्रथम विश्वयुध और द्वितीय विश्वयुध के समय भी ये दुनिया नहीं रुकी थी जब लाखों लोगों ने अपनी जान गँवाई थी। मग़र आज की लड़ाई उन विश्वयुद्धों से कई गुना बड़ी है।

जब भी इंसान प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है, उसका संतुलन बिगाड़ता है और सारी हदें पार कर देता है तो ऐसा होना कोई बड़ी बता नहीं है। प्रकृति ख़ुद को संतुलित करना बख़ूबी जानती है। क़ुदरत को सामंजस्य स्थापित करना भली भाँति आता है। इन हालत में संयमित, सतर्क और समझदार रहने की ज़रूरत है तभी हम स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे। देशभर में लाक्डाउन है और समय का सदुपयोग करने की ज़रूरत है। इस लाक्डाउन में यह समझना बहुत ज़रूरी है कि यह सख़्ती हमारी भलाई के लिए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को समझने और इससे बचने की बहुत सारी जानकरी साझा की है। इसके साथ ही कई कोर्स भी साझा किए हैं ताकि हम ना केवल इसके बारे में ज्ञान अर्जित कर सकें अपितु आपातकाल की इस घड़ी में आवश्यकता अनुसार, इसकी रोकथाम के लिए अपना योगदान भी दे सकें।

WHO-corona-certificate

WHO-Corona-Cerificate

 

पर कई बार यह देखकर मन खिन्न भी हो जाता है कि कुछ अत्यधिक समझदार- मंदबुद्धि इसे अपनी तौहीन समझ रहे हैं। ये मूर्ख, बेवजह ना केवल लॉक्डाउन का उलंघन बल्कि असंवैधानिक गतिविधियाँ भी कर रहे हैं। यक़ीन मानिए, यदि आपको लगता है कि आप स्वतंत्र नहीं हैं, यदि अपको लगता है कि आप बोर हो रहे हैं या आपको नकारात्मकता के भाव आ रहे हों तो कुछ बातों पर विचार ज़रूर कीजिएगा-

1- विचार कीजिएगा और ख़ुशी मनाइएगा कि आप उस कठिन दौर में नहीं हैं, जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना जीवन जेल में निकाल दिया था।

2- विचार कीजिएगा और ख़ुशी मनाइएगा कि आप 1975 से 1977 तक के इमर्जेन्सी वाले हालत में नहीं हैं, जब लाखों लोगों को ज़बरन जेल में सड़ना पड़ा था।

हर परिस्थिति को कई नज़रिए से देखा जा सकता है। वैसे ही आपदा की इस परिस्थिति में ऊर्जा को सही दिशा दीजिए और सकारात्मक सोच की ज्वाला जगाइए-

खुशी मनाइए कि इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आपको ठहरने और कुछ साँस लेने का मौक़ा मिला। अपनों को समझने और समय देने का मौक़ा मिला। कुछ नया सीखने का मौक़ा मिला। आत्म-मंथन और आत्म-चिंतन का मौक़ा मिला। हर व्यक्ति के जीवन में कुछ अधूरे कार्य होते हैं, उन्हें करने का मौक़ा मिला,  कुछ नई ज़िम्मेदारियों से रूबरू होने का मौक़ा मिला। मौक़ा मिला है उन अनदेखे और अछूते पहलू को समझने का कि कैसे घर की औरतें और दूसरे सदस्य अपने कार्यों का निर्वाहन करते हैं। समय है उसे समझने और उनके कार्यों की क़द्र करने का।

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ख़ुशी मनाओ यार कि कम से कम आप अपने परिवार और अज़ीज़ों के साथ हैं, ख़ुशी मनाओ कि सोने के लिए गुलगुल गद्दे पर मख़मली चादर है और पंखे बराबर काम कर रहे हैं, ख़ुशी मनाओ कि लज़ीज़ भोजन का लुत्फ़ उठा रहे हो, ख़ुशी मनाओ कि फ़ेस्बुक, इंस्टाग्राम, यूटूब, टिकटॉक का लुत्फ़ उठा पा रहे हो, आधिकांशतः हर वो चीज़ आपके पास है जिससे आपको ख़ुशी मिलती है। इस हालात में ये समझना बहुत ज़रूरी है कि –

” जो प्राप्त है वो पर्याप्त है “

Janta-Curfew

Janta-Curfew

कोई ना यारों, माना कुछ ज़रूरी काम छूट गए होंगे, कुछ नुक़सान हो रहा होगा, छोड़ दे यारा।। जब सारी दुनिया रुकी है, तो थोड़ा आप भी रुक जाओ और लुत्फ़ उठाओ इस दौर का, क्यूँकि कोरोना भी कहता है कि मैं बार-बार नहीं आता। आया हूँ आपको अपनों से जोड़ने, प्रकृति को सँवारने की सीख़ देने।

डरने की कोई बात नहीं है, मैं गर्व से कह सकता हूँ कि हम सवा सौ करोड़ का नेत्रत्व मज़बूत हाँथों में है।

आज पूरी दुनिया के हालत देखकर मन भयभीत होता है पर जब भारत का आँकड़ा देखता हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है। इस लड़ाई को यक़ीनन कई लोगों ने अलग अलग तरफ़ से संभाल रखा है पर बिना सही नेत्रत्व के इसे संभाल पाना असम्भव था। चाहे उसे प्रधान सेवक कहो या प्रधानमंत्री, बिना नमो के इस स्तर पर काम होना लगभग असम्भव था।

और ध्यान रखना-

अक़ाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, कोरोना भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।। 

नीचे लिखी विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट की लिंक से आप भी ये कोर्स कर सकते हैं और कोरोना को हराने में मज़बूती से सहयोग कर सकते हैं –

https://openwho.org

अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें । घर में रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें । जय हो आपकी ।

धन्यवाद ।।

Shared thoughts with Dainik Bhaskar

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यूसुफ़ बोहरा भाई का ख़ास आभार – जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है वाली पंचलाइन के लिए।

#corona #covid-19 #stayhome #staysafe #bepositive

April 17, 2020 0 comment
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The Trail Within | घुमक्कड का घर

by admin March 31, 2020
written by admin
Times Passion Trail | Madhya Pradesh Tourism

Times Passion Trail Madhya Pradesh | 14th -19th March’2020

क्या आप जानते हैं कि भारतीय कला, संस्कृति और विरासत को किस और नाम से जाना जा सकता है – निश्चित ही टाइम्ज़ पैशन ट्रेल से।

टाइम्ज़ पैशन ट्रेल, टाइम्ज़ आफ़ इंडिया ग्रूप की एक ऐसी अनोखी पहल है जिसमें न केवल देश के पर्यटन को बढ़ावा मिलता है अपितु बहुत ही बारीकियों से अपनी बहुमूल्य और गरिमामई कला, संस्कृति और विरासत को जानने और समझने का मौक़ा मिलता है। टाइम्ज़ पैशन ट्रेल, केंद्र और राज्यों के पर्यटन, कला-संस्कृति और पुरातत्व विभागों के साथ सहभागिता करके इन कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
टाइम्ज़ पैशन ट्रेल के मध्य प्रदेश संस्करण में सम्मिलित होने का अवसर मुझे मिला। 14 से 19 मार्च 2020 तक चले इस ट्रेल की शुरुआत हिंदुस्तान के दिल, मध्य प्रदेश की राजधानी, झीलों के शहर भोपाल से हुई। अविस्मरणीय पलों के लिए हम सभी बहुत उत्साहित थे और तैयार थे जीवन के नूतन अनुभवों के लिए।
अगर मैं टाइम्ज़ पैशन ट्रेल के प्रमुख संजय लाल जी की मानूँ तो अगले ६ दिन हम काल चक्र को पीछे करके इतिहास में जीने वाले थे।
मैं मूलतः मध्य प्रदेश का ही रहने वाला हूँ और अव्वल दर्जे का घुमक्कड हूँ। चूँकि मध्य प्रदेश के अधिकांशतः जगह मैंने पहले ही देख रखी थी तो सच कहूँ कि मेरे मन में तनिक संशय भी था, कि इस यात्रा में अब नया क्या होने वाला है। बहरहाल ये तो वक़्त ही बताने वाला है।
पहले दिन मैं जहनुमा पैलेस में रुका। यहाँ रुके घुमक्कड साथियों से परिचय हुआ और साथ ही परिचय हुआ हमारे मेज़बान – टाइम्ज़ पैशन ट्रेल की टीम से। हम सब अपनी ख़ुसफुस में व्यस्त थे कि इसी बीच एक और व्यक्ति ने हमें ज्वाइन किया। बातें शुरू होने के कुछ ही क्षण बाद हम सब को यह अहसास हो गया कि यह साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति बहुत ही असाधारण और बहुमुखी प्रतिभा का धनी है। हमारी यात्रा को सार्थक बनाने के लिए इस महान विभूति को हमारा मार्गदर्शक बनाया गया। हमारी ख़ुशी का ठिकाना ना था जब हमें मालुम पड़ा कि यह सज्जन कोई और नहीं बल्कि स्वयं पद्मश्री पुरातत्वविद श्री के के मोहम्मद जी हैं। भारत के इतिहास और धरोहरों को संभालने और उनके रख-रखाव में इन्होंने, पुरातत्व विभाग के डिरेक्टर के तौर पर आजीवन अहम भूमिका निभाई। शाम इनसे गुफ़्तगू करते कब बीत गई पता ही नहीं चला। रात्रि भोज से पहले मध्य प्रदेश पर्यटन के अधिकारियों से कार्यक्रम की रूपरेखा कि जानकारी मिली और औपचारिक मुलाक़ात हुई। रात्रि विश्राम के दौरान श्री के के मोहम्मद जी के संस्कृत और धर्म के प्रति उनके प्यार और लगाव को देखकर वो दोहा याद आ गया और उनके सम्मान में ये तो कहना बनता है कि “जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान”

14 मार्च की सुबह हम जहनुमा रिट्रीट पंहुचे और अपने दल के बाक़ी साथियों से परिचय हुआ। सभी सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोग समाज के अलग-अलग क्षेत्र से थे। कोई फ़ौजी, कोई डॉक्टर, कोई लेखक़ तो कोई मुझ जैसा घुमक्कड। मगर हम सब में एक बात जो समान थी, वो थी कला, संस्कृति और धरोहरों से प्रेम। अपने इतिहास को जानने और समझने की लालसा और अपना देश देखने की चाहत।
टाइम्ज़ पैशन ट्रेल का आग़ाज़ हो चुका था और सांस्कृतिक संध्या से इसका शुभारंभ हुआ। भारत के प्रथम संस्कृत रॉक बैंड ध्रुवा ने गोविंद के गानों से समा बाँध दिया। इस संगीतमयी शाम को संस्कृत और संस्कृति के धागे से इतनी ख़ूबसूरती से बाँधा, कि वहाँ उपस्थित सभी लोग स्तब्ध हो गए और ऐसा लगा मानो समय भी उसका आनंद लेने के लिए रुक गया हो।

भीमबेटका की गुफाएँ
टाइम्ज़ पैशन ट्रेल का क़ाफ़िला निकल चुका था। कार्यक्रम का शुभारंभ मानवों के इतिहास से हुआ और हमें भीमबेटका जाकर इंसानों के शुरुआती दिनों और हमारे अतीत से रूबरू होने का मौक़ा मिला।
श्री के के मोहम्मद साहब बताते हैं कि यह इतिहास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूँकि यूरोप में मनुष्यों का संज्ञानात्मक विकास चालीस हज़ार वर्ष पूर्व शुरू हुआ वहीं भीमबेटका में इसकी शुरुआत लगभग एक लाख साल वर्ष पहले ही हो गई थी। विंध्यांचल पर्वत शृंखला के निचले हिस्से में स्थित इन गुफ़ाओं में बनी चित्रकारियाँ यहाँ रहने वाले पाषाण युग के मनुष्यों के बौधिक विकास की कहानी दर्शाते हैं। गुफ़ाओं में लाल और सफ़ेद रंग की चित्रकारियों में हाथी, घोड़े, बाघ जैसे जानवरों के चित्र हैं। इसके साथ ही शिकार करना, नृत्य करना, संगीत बजाना जैसी कला क्रती भी मौजूद है। हम कृतज्ञ हैं श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर और श्री मोहम्मद जैसे पुरातत्वविदों के, जिनके कारण ही, हम अपने इतिहास को टटोल पाते हैं।भीमबेटका की चट्टानें देखकर मेरे अंदर का पर्वत प्रेम बाहर आ गया और चट्टानों में हाथ आज़माए बिना चैन नहीं मिला। सही कहते हैं बंदर कभी गुलाट मारना नहीं छोड़ सकता।

भोजेश्वर महादेव मन्दिर, भोजपुर
भीमबेटका के बाद हमारी टीम भोजपुर पहुँची। राजा भोज की नगरी भोपाल, का एक ख़ूबसूरत पहलू भोजपुर है हालाँकि अब यह रायसेन जिले की शान है। शिव को अपना आराध्य मानने वाले राजा भोज चाहते थे कि उनके क्षेत्र में शिव का सबसे बड़ा और सुंदर मन्दिर बने। इसी के चलते ही शायद उन्होंने सबसे बड़ा ज्योतिर्लिंग बनाने का प्रण किया। श्री मोहम्मद बताते हैं कि एक ही पत्थर से बनाया गया यह विश्व का सबसे ऊँचा शिवलिंग है। सूर्यास्त के समय सूर्य किरणों का शिवलिंग पर पड़ना, मानो जाते-जाते सूर्यदेव ख़ुद भी शिव के इस विशालकाय रूप से अभिभूत होना चाहते हों।

ताज-उल-मसाजिद
शायद ही कोई भोपाल आए और ताज-उल-मसाजिद की भव्यता ना देखे। टाइम्ज़ पैशन ट्रेल की टीम आज एक ऐसे इतिहास को टटोलने जा रही थी जो जीता-जागता सबूत है वीरांगनाओं का। हमारे मार्गदर्शक जमाल अय्यूब जी जब ताज-उल-मसाजिद और वहाँ की बेगमों की वीरतापूर्ण चरित्र की दास्तान सुना रहे थे, जिन्होंने २ सदियों तक भोपाल में राज किया तो लग रहा था कि जिस महिला सशक्तिकरण की बात हम आज कर रहे हैं उसे तो इन बेगमों ने बहुत पहले ही चरितार्थ कर दिया था। यक़ीनन यह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पहलुओं में से एक है।

मध्य प्रदेश पर्यटन की तरफ़ से इस कार्यक्रम को बिना किसी अवरोध के पूर्ण कराने के लिए राज्य शासन की पायलट गाड़ी ने हमें भोपाल से रूक्सत किया जो अपने आप में बहुत दिलचस्प था। सफ़र आगे बढ़कर कर्क रेखा पर रुका और फिर हम साँची के लिए प्रस्थान कर गए।

साँची स्तूप
श्री के के मोहम्मद जी ने जब ये बताया कि बुद्ध कभी साँची आए ही नहीं तो मुझे यह जानकर बहुत ताज्जुब हुआ। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित इस महान स्तूप और उसके आलीशान तोरन आज भी बख़ूबी दर्शाते हैं कि हमारे मूर्तिकार और कारीग़र अपने काम में कितने श्रेष्ठ और निपुण थे। यह भी बहुत अहम बात थी कि हमारे राष्ट्रपति भवन को यहीं से प्रेरित होकर बनाया गया था।

उदयगिरी
उदयगिरी की गुफ़ाओं में बहुत ही ख़ूबसूरती से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। गुफा में भगवान विष्णु एक प्रतिमा में लेटे हुए हैं और उनके आस पास उनके भक्त खड़े हैं। गुफ़ा की मूर्तियों में त्रिदेव हों या गणेश, सभी को बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से आस्था के साथ बनाया गया है और उन कारीगरों का कौशल और निपुणता, क़ाबिले तारीफ़ है। पत्थरों पर बनाई इन प्रतिमाओं और गुफाएँ को देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जाएँगे। शाम को साँची वापस लौट कर स्तूप में साउंड और लाइट शो का लुत्फ़ उठाया और वहाँ के इतिहास को और बेहतर तरीक़े से जाना।

बेगमों की रियासत छोड़ हम बुद्ध के शरण में थे और अब बारी थी बुंदेलखंड की। अगली सुबह हम ओरछा के लिए रवाना हुए और इस बीच हम चन्देरी में रुके।

चन्देरी
काली भाई के नेत्रत्व में हमें इस प्राचीन शहर चन्देरी के बारे में जानने का मौक़ा मिला। शुरुआत भारतीय पुरातत्व विभाग के चन्देरी संग्रहालय से हुई जिसके बाद बादल महल और चन्देरी क़िले की सुंदरता और भव्यता देखने को मिली। यात्रा के इस पड़ाव तक पंहुचने के बाद अब मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि समय चक्र को पीछे ले जाकर इतिहास को दुबारा जीने का मौक़ा हमें मिला है। संजय लाल जी का कहा हर शब्द सही हो रहा था और अपने घर और प्रदेश को, एक नए नज़रिए से देख रहा था।
इतिहास के पन्नो से वर्तमान में लौटने के लिए चन्देरी गेट की एक झलक ही काफ़ी थी। काली भैया ने चन्देरी गेट के महत्व को समझाते हुए बताया कि कैसे मालवा और बुंदेलखंड को ये जोड़ता है और मध्य भारत का प्रमुख व्यापार केंद्र था। रोचक बात ये भी थी कि बॉलीवुड की सुपरहिट फ़िल्म स्त्री की शूटिंग यहीं हुई थी।

इस बीच लंच के लिए हम मध्य प्रदेश पर्यटन के क़िला कोठी में रुके। लज़ीज़ देसी व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने के बाद काली भैया के साथ निकल पड़े चन्देरी क़िले के उस पहलू को देखने, जहाँ अप्रतिम सौंदर्य की मालकिनों ने अपने मान-सम्मान को बचाने के लिए जौहर किया। क़िला कोठी का जौहर स्मारक इन वीरांगनाओं की वीरता की कहानी आज भी चीख़-चीख़ कर बयां करता है।

ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में चन्देरी की साड़ियों की चमक है। यहाँ के कारीग़र कितनी बारीकी और लगन से काम करते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है इनके द्वारा निर्मित विश्व की सबसे बेहतरीन माने जाने वाली साड़ियाँ। चन्देरी में काफ़ी कुछ है जो आपको आनंदित और प्रफुल्लित कर देगा। यक़ीं मानिए, मध्य प्रदेश पर्यटन यूँ ही नहीं कहता कि – हिंदुस्तान का दिल देखो।।

ओरछा
चन्देरी की यादों को समेट कर टाइम्ज़ पैशन ट्रेल की गाड़ी के चक्के बढ़ चले थे बेतवा नदी के किनारे बसे राजा राम चंद्र जी की नगरी ओरछा। राम मन्दिर की घंटियों, चिड़ियों की चहचहाहट, बेतवा का कल-कल करता पानी, मानो इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में ठहराव सा आ गया हो, मानो हमें आत्म-मंथन और आत्म-चिंतन का समय मिल गया हो। वहीं ओरछा के दूसरी ओर, प्राचीन महल और इमारतें यहाँ के बुंदेलाओं की वीरता और शौर्यपूर्ण कार्यों की गवाही दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो ओरछा ने एक ही चादर में पूरी कायनात समेट ली हो। ओरछा की मनमोहक छवि शायद ही कभी मानस पटल से मिट पाएगी। महराजा वीर सिंह बुंदेला की छत्री हो या ओरछा राज परिवार की राजकुमारी रजेश्वरी और राजकुमार रुद्रप्रताप जी के साथ भोजन, इतना सब कुछ सुव्यवस्थित करना टाइम्ज़ पैशन ट्रेल के ही बूते की बात है।

खजुराहो
चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। मन कर रहा था कि समय की रफ़्तार को रोक दूँ, पर भला समय रुका है क्या कभी किसी के लिए।
टाइम्ज़ पैशन ट्रेल का क़ाफ़िला खजुराहो पंहुच कर अपने अंतिम दौर पर आ चुका है। खजुराहो का मन में आते ही कामुक प्रतिमाओं का ध्यान आता है पर अगर अनुराग शुक्ला जी की मानें तो खजुराहो में ना केवल कामुकता बल्कि पूरे जीवन चक्र को दर्शाया गया है। यहाँ कला, संस्कृति, कारीगरी के ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिन्हें देखकर आप दाँतों तले उँगलियाँ दबा लेंगे। चंदेल राजाओं ने 85 मंदिर बनवाए थे पर रख-रखाव की कमी के चलते अब यहाँ सिर्फ़ 25 मंदिर ही शेष हैं जो अब पुरातत्व विभाग के अंदर हैं और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है।

अनुराग शुक्ला जी खजुराहो में हमारा मार्गदर्शन करने वाले थे। यहाँ के मन्दिर ना केवल विष्णु-महेश के गुणगान करते हैं बल्कि चंदेल राजाओं की दूरगामी सोच को भी दर्शाते हैं। वराह मंदिर, लक्ष्मण मन्दिर, कंदरिया महादेव, जैन मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, दुल्हादेव मंदिर और क्या नहीं।। खजुराहो की शाम बहुत ही ख़ास थी। और होती भी क्यूँ ना! सूफ़ी संगीत के उस्ताद ध्रुव संग्री और उनकी टीम द्वारा बहुत ही मधुर सूफ़ी संगीत का कार्यक्रम।

अंत में मध्य प्रदेश पर्यटन द्वारा निर्मित कुटनी आयलंड में भोजन कर वहाँ के ख़ूबसूरत नज़ारों का लुत्फ़ लिया। कुटनी देखने के बाद यही समझ आया कि हमारे देश में ऐसे अंगिनत छुपे रत्न हैं जिनकी ख़बर रत्नेश को नहीं। कुटनी के उपरांत खजुराहो बाज़ार से कुछ एंटीक की ख़रीददारी कर हम अपने गंतव्य को रवाना हुए।

दिल में यादें लिए, अपने घर-मध्य प्रदेश को एक नए नज़रिए से देखकर बहुत सुख की अनुभूति हुई। और हाँ, संजय जी ने शुरुआत में सही ही कहा था कि आप इतिहास को दुबारा जीने जा रहे हैं। आज उनकी कही हर बात चरितार्थ हो गई।

ऐसी कोई कहानी ही नहीं जो बिना कैमरे की हो। हर पल को छवि या चलचित्र में समेट कर यादगार बनाने के लिए बहुत ऐसे हाँथ होते हैं जो परदे के पीछे से काम करते हैं।

टाइम्ज़ पैशन ट्रेल के उन्ही साथियों के प्रति कृतज्ञता ज़ाहिर किए बिना ये लेख अधूरा ही रह जाएगा। इसलिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया – संजय लाल, तलहा तुंगेकर, दुष्यंत सिंह, गौरव जैन, जतिन कपूर, जूही अरोरा, राहुल सिंह, जमाल आयुब, अमित भारद्वाज, सचिन रावत, विनोद पाण्डेय, लोचन माली, समन अली, शोएब रहमान, विवेक राय, राहुल शर्मा, चाँद भाई इत्यादि।

धन्यवाद।।

#LiveWhatYouLove #sabkuchjodilchahe #mptourism #heartofindia

March 31, 2020 0 comment
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